Supreme Court ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार को भेजा जरूरी नोटिस, जानिए क्या है पूरा मामला

Edited By Vandana Khosla, Updated: 15 Jul, 2025 03:28 PM

supreme court sent important notice to uttar pradesh and uttarakhand

Uttarakhand desk: उच्चतम न्यायालय ने कांवड़ यात्रा मार्ग पर दुकान मालिकों की जानकारी हासिल करने के उद्देश्य से कथित तौर पर‘क्यूआर कोड'प्रदर्शित करने के उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों के निर्देश को चुनौती देने वाली एक याचिका पर मंगलवार को उन्हें...

Uttarakhand desk: उच्चतम न्यायालय ने कांवड़ यात्रा मार्ग पर दुकान मालिकों की जानकारी हासिल करने के उद्देश्य से कथित तौर पर‘क्यूआर कोड'प्रदर्शित करने के उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों के निर्देश को चुनौती देने वाली एक याचिका पर मंगलवार को उन्हें नोटिस जारी किया। न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद झा और अन्य की ओर से दायर याचिका पर दोनों राज्यों को एक सप्ताह में अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 22 जुलाई की तारीख मुकरर्र की है।

"कांवड़ यात्रा मार्ग पर विक्रेताओं की पहचान उजागर करना संविधान का उल्लंघन"
गत 11 जुलाई से शुरू कांवड़ यात्रा आगामी नौ अगस्त तक चलेगी। अदालत के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता चंदर उदय सिंह, हुजेफा हमदी और शादान फरासत याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए, जबकि उत्तराखंड सरकार का पक्ष रखने उप महाधिवक्ता जतिंदर कुमार शेठी पेश हुए। प्रो. झा ने याचिका में दलील देते हुए कहा है कि वे (निर्देश) शीर्ष अदालत के 2024 के एक आदेश के खिलाफ हैं। अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि कांवड़ यात्रा मार्ग पर विक्रेताओं को अपनी पहचान उजागर करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। ऐसा निर्देश संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 17, 19 और 21 का उल्लंघन है।

"विक्रेताओं के धार्मिक पहचान का खुलासा करने का निर्देश वापस ले कोर्ट"
याचिकाकर्ता ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्यों को सभी क्यूआर कोड-आधारित पहचान संबंधी अनिवार्यताओं या किसी भी अन्य ऐसी व्यवस्था को तुरंत वापस लेने का निर्देश देने की मांग की, जिससे विक्रेताओं के मालिक होने की पहचान या धार्मिक पहचान का खुलासा होता हो। याचिका में राज्यों को हलफनामा दायर करके यह बताने का निर्देश देने की भी मांग की गई कि वर्तमान अनिवार्यताएं संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन कैसे नहीं करती हैं। 

    

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