Edited By Vandana Khosla, Updated: 21 Dec, 2024 08:46 AM
चमोलीः शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के द्वारा 16 दिसंबर को हरिद्वार के चंडी घाट से शुरू की गई शीतकालीन चारधाम दर्शन तीर्थ यात्रा खरसाली, मुखवा, ओंकारेश्वर उखीमठ होते हुए बदरीनाथ के शीतकालीन पूजा स्थली ज्योर्तिमठ के नरसिंह मंदिर पहुंची।...
चमोलीः शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के द्वारा 16 दिसंबर को हरिद्वार के चंडी घाट से शुरू की गई शीतकालीन चारधाम दर्शन तीर्थ यात्रा खरसाली, मुखवा, ओंकारेश्वर उखीमठ होते हुए बदरीनाथ के शीतकालीन पूजा स्थली ज्योर्तिमठ के नरसिंह मंदिर पहुंची। नृसिंह बदरी मंदिर पहुंचने पर लोगों ने पुष्प वर्षा कर शंकराचार्य का स्वागत किया। शंकराचार्य जगतगुरूकुलम विद्यालय में अध्यनरत छात्रों ने स्वस्तिवाचन कर शंकराचार्य का स्वागत किया। महिलाओं ने मठांगन में मांगल गीत गायन किए एवं भजन कीर्तन किया।
"शीतकालीन पूजा स्थली में दर्शन कई गुना अधिक फलदायक होते हैं"
ज्योर्तिमठ पहुंचकर शंकराचार्य ने भगवाना गरूड़, नवदुर्गा, वासुदेव, महालक्ष्मी, भगवान नृसिंह, राजराजेश्वरी व आदि शंकराचार्य कोठ के दर्शन कर विशेष पूजा अर्चना की। मठांगन में भक्तों को संबोधित करते हुए कहा कि उत्तराखंड के चारधाम आध्यात्मिक ऊर्जा हैं। कहा कि पिछले कुछ दशकों से ग्रीष्मकालीन पूजा धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री व गंगोत्री धाम के कपाट बंद होने के बाद लोगों तक यह संदेश जाने लगा कि मात्र ग्रीष्मकाल में ही उत्तराखंड के चारों धाम में तीर्थ यात्री दर्शन करने आ सकते है जो गलत है। उन्होंने कहा कि ग्रीष्म काल की यात्रा पूरी होने पर वहां के कपाट बंद होने पर आदि काल से शीतकालीन यात्रा का विधान है। इसलिए चारों के शीतकालीन धाम भी हैं। जहां पर प्राचीन समय में तीर्थ यात्री दर्शन के लिए आया करते थे। शंकराचार्य ने कहा कि छह - छह माह के आधार पर चारों धामों की पूजा वर्ष भर संपादित होती है। ग्रीष्म काल में मुख्य धाम में व शीतकाल में शीत धाम में भक्त दर्शन एवं पूजा करते हैं। शंकराचार्य ने कहा कि यह शास्त्र संगत तथ्य है कि शीतकालीन पूजा स्थली में दर्शन कई गुना अधिक फलदायक होते हैं।
शंकराचार्य ने कहा कि शीत यमुनोत्री खरसाली, शीत गंगोत्री मुखवा, शीत केदार उखीमठ, शीत बदरी ज्योर्तिमठ है। इन सभी शीतकालीन पूजा स्थल में आदिकाल से ही पूजा व्यवस्था बनी हुई है। शंकराचार्य ने कहा कि चार धामों की यात्रा का असली आनंद तो सर्दी के समय ही है। इस समय पहाड़ो की सुंदरता देखते ही बनती है। साथ ही पूरे यात्रा पड़ाव में अब सालभर रहने की उचित व्यवस्थाएं हैं व बेहतर सड़क बन जाने के बाद अब शीतकालीन यात्रा में आने वाले तीर्थ यात्रियों को कोई परेशानी भी नहीं होगी। शंकराचार्य ने कहा कि उनके द्वारा शुरू की गई शीतकालीन चारधाम यात्रा का उद्देश्य तीर्थ यात्रियों को शीतकाल में भी दर्शन स्थलों एवं पीठों तक लाना है। ताकि स्थानीय लोगों, हक हकूक धारियों, पंडा पुरोहितों समेत पूरे प्रदेश को इससे लाभ मिले।
"सनातन धर्म एवं हिन्दू धर्म में कोई अंतर नहीं"
शंकराचार्य ने कहा कि सनातन धर्म व इसके मूल्य शाश्वत है व इसके मुल्य परिस्थितियों के अनुसार बदल नहीं सकते हैं। कहा कि हिन्दू का अर्थ हिंसा से दूर रहना है। हिन्दू एवं सनातनी दोनों का अर्थ एक ही है। कहा कि आजकल एक नया शब्द हिन्दुत्व आ गया है। उन्होंने कहा कि वास्तव में हिन्दुत्व का अर्थ हिन्दू होने का भाव है। लेकिन, आजकल का प्रचलित हिन्दुत्व शब्द राजनीतिक प्रयोग है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में हिंदुत्व व हिन्दू शब्द का प्रचलन धर्म पालन के लिए नहीं अपितु हिन्दुओं को एकत्रित कर राजनीतिक सत्ता प्राप्ति के लिए अधिक किया जा रहा है।
संभल पर बोले शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती
स्वामि अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती ने कहा कि संभल में मंदिर,मस्जिद विवाद पर हिन्दू एवं मुसलमान दोनों के दिल दुखी हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दू युवा यह सोंचकर कि कालान्तर में हमारे मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई यह सोंचकर दुखी हैं। जबकि मुस्लिम युवा आज की परिस्थितियों में यह सोच रहा है कि क्या हमारे पूर्वज ऐसे ही अत्याचारी थे। साथ ही वो ये सोचकर भी दुखी हैं कि इस्लाम तो अन्य धर्मों के मंदिरों को तोड़ने की इजाजत ही नहीं देता है फिर ऐसा कैसे हो गया, या यह सब उनके धर्म के बारे में भ्रम फैलाया जा रहा है। यह सब सोचकर मुस्लिम युवा दुखी है। शंकराचार्य ने मांग की कि ऐसे समस्त धर्मस्थल जिसमें विवाद है की सूची बनाकर दोनो धर्मों के बुद्धीजीवी लोगां को बैठकर सौहार्दपूर्ण माहौल में उन जगहों का परीक्षण करवाकर निर्णय कर लेना चाहिए ताकि सदा के लिए भ्रम की स्थित दूर हो सके।