हल्द्वानी में बैठकी Holi की धूम! देर रात तक बैठने और झूमने पर मजबूर कर रहा होली गायन

Edited By Vandana Khosla, Updated: 08 Mar, 2025 02:41 PM

the excitement of sitting holi in haldwani

हल्द्वानीः कुमाऊं में होली धीरे धीरे अपने चरम पर है। दरअसल, यहां होली पौष माह के पहले रविवार से ही शुरू हो जाती है और देर शाम से रात तक कुमाऊं में बैठकी होली का दौर शुरू हो जाता है। बता दें कि हल्द्वानी में आजकल लगातार शास्त्रीय रागों पर आधारित होली...

हल्द्वानीः कुमाऊं में होली धीरे धीरे अपने चरम पर है। दरअसल, यहां होली पौष माह के पहले रविवार से ही शुरू हो जाती है और देर शाम से रात तक कुमाऊं में बैठकी होली का दौर शुरू हो जाता है। बता दें कि हल्द्वानी में आजकल लगातार शास्त्रीय रागों पर आधारित होली का गायन चल रहा है। जो लोगों को देर रात तक बैठने और झूमने पर मजबूर कर देगा।

जानिए क्या है बैठकी होली का महत्व

आपको बता दें कि कुमाऊंनी संस्कृति में बैठकी होली का अलग ही महत्व है। माना जाता है की 15वीं शताब्दी से यहां होली गायन की शुरुआत हुई थी। चंद वंश के शासनकाल में यह चंपावत से शुरू हुई और धीरे धीरे सभी जगह फैल गई। होली गायन गणेश जी के पूजन से शुरू होता है। जो शिव पार्वती की आराधना के साथ- साथ राधा कृष्ण की हसीं ठिठोली से सराबोर होता है। शास्त्रीय रागों पर आधारित खड़ी औऱ बैठकी होली मंदिरों और घरों में गायी जाती रही है। माना जाता है कि दिसंबर यानी पौष माह की रातें बेहद सर्द औऱ लंबी होती हैं। जिनको व्यतीत करने के लिए लोग रात भर बैठकी होली गाते रहे हैं। वहीं, अब होली के नज़दीक आते ही लिहाज़ा रातो में हारमोनियम औऱ तबले की थाप पर रागों पर आधारित होली की सुरीली महफ़िल जम रही हैं।

इन रागों पर आधारित हैं बैठकी होली

कुमाऊं में अधिकतर होली रागों पर आधारित हैं। महिलाओं की होली हंसी ठिठोली पर आधारित है, तो पुरुषों की होली तबले, चिमटे और हारमोनियम की धुनों पर आधारित है। आजकल जिन रागों पर होली गायी जा रही है। उनमें बसंत, फागुन, रंग ठुमरी शामिल हैं, कुमाऊं में गायी जाने वाली होली की विशेषता यह है की ज्यादातर होली ठेठ शास्त्रीय रागों पर आधारित हैं।

भाईचारे औऱ संस्कृति को आगे बढ़ा रहा होली गायन

पौष माह के शुरुआत से ही कुमाऊं में होली का रंग लोगो पर चढ़ने लगा है। जो होली के दिन तक खुशनुमा रंगों में तब्दील हो जाएगा। यह होली गायन होली का प्रतीक ही नहीं बल्कि आपसी भाईचारे औऱ संस्कृति सरक्षंण को भी आगे बढ़ा रही है।

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