नैनीतालः HC ने यूपी-उत्तराखंड के अधिकारी किए तलब, जानें क्या है पूरा मामला

Edited By Vandana Khosla, Updated: 19 Mar, 2025 12:10 PM

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नैनीतालः उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने कालागढ़ में कार्बेट टाइगर रिजर्व (सीटीआर) के कोर जोन में सिंचाई विभाग की भूमि पर काबिज अतिक्रमणकारियों के पुनर्वास के मामले में मंगलवार को सुनवाई करते हुए वित्त, राजस्व और सिंचाई सचिवों के साथ ही उत्तर प्रदेश के...

नैनीतालः उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने कालागढ़ में कार्बेट टाइगर रिजर्व (सीटीआर) के कोर जोन में सिंचाई विभाग की भूमि पर काबिज अतिक्रमणकारियों के पुनर्वास के मामले में मंगलवार को सुनवाई करते हुए वित्त, राजस्व और सिंचाई सचिवों के साथ ही उत्तर प्रदेश के अधिकारियों को 21 मार्च को अदालत में वर्चुअल पेश होने के निर्देश दिए हैं। अदालत ने सरकारी कर्मचारियों और पेंशनधारियों को हटाने की छूट जिला प्रशासन को दे दी है। कालागढ़ जन कल्याण उत्थान समिति की ओर से दायर जनहित याचिका पर मुख्य न्यायाधीश जी. नरेन्द्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ में सुनवाई हुई।

पौड़ी के जिलाधिकारी आशीष चौहान अदालत में व्यक्तिगत रूप से पेश हुए और उन्होंने अनुपालन रिपोर्ट अदालत में पेश की। उन्होंने अदालत को बताया कि कालागढ़ के कोर जोन में तीन श्रेणी के लोग काबिज हैं। इनमें 18 सरकारी कर्मचारी, 104 पेंशनधारी और उन पर निर्भर परिवार के साथ ही शेष 242 ऐसे अतिक्रमणकारी हैं जिनमें मजदूर और अन्य लोग शामिल हैं। उन्होंने यह भी बताया कि 95 अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। अदालत ने जिला प्रशासन को सरकारी कर्मचारियों और पेंशनधारकों को भूमि खाली कराने के मामले में आवश्यक कार्रवाई करने के लिए छूट दे दी है। शेष मजदूरों और अन्य लोगों के पुनर्वास के संबंध में पीठ ने प्रदेश के वित्त, राजस्व और सिंचाई विभाग के सचिवों को शुक्रवार 21 मार्च को अदालत में वर्चुअल पेश होने को कहा है।

अदालत के संज्ञान में यह बात भी लायी गयी कि कालागढ़ बांध में उप्र सरकार की भी भूमिका है। इसके बाद अदालत ने जारी आदेश की एक प्रति उप्र सरकार को मुहैया कराने के निर्देश भी दिये हैं। अदालत ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव को उप्र के अधिकारियों से इस संदर्भ में बात करने के निर्देश दिये हैं। यही नहीं अदालत ने उप्र के अधिकारियों को भी 21 मार्च को अदालत में वर्चुअली पेश होने को कहा है। यहां बता दें कि याचिकाकर्ता समिति की ओर से दायर जनहित याचिका में कहा गया कि तत्कालीन उप्र सरकार की ओर से वर्ष 1960 में कालागढ़ बांध बनाए जाने के लिये वन विभाग की हजारों हेक्टेअर भूमि को सिंचाई विभाग को सौंपी गई थी। बांध निर्माण के बाद अवशेष भूमि वन विभाग को हस्तगत नहीं की गयी। इस भूमि पर वर्षों से लोग काबिज हैं। समिति की ओर से उन्हें विस्थापित करने की मांग की गयी है। अब इस मामले में आगामी 21 मार्च को सुनवाई होगी। 

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