Edited By Ramanjot, Updated: 22 Dec, 2024 08:52 AM
देहरादून निवासी विकेश नेगी की ओर से दायर जनहित याचिका पर कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की युगलपीठ में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि उसके संज्ञान में आया है कि विकासनगर के क्यारकुली भट्टा,...
नैनीताल: उत्तराखंड के देहरादून जिले के विकासनगर में वन भूमि पर कथित रूप से अतिक्रमण कर खुर्द-बुर्द करने के मामले में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने कोई ठोस निर्णय नहीं देते हुए याचिकाकर्ता को तीन सप्ताह के अंदर संबंधित प्रभागीय वनाधिकारी को प्रत्यावेदन सौंपने के निर्देश दिए हैं। साथ ही डीएफओ को क्षेत्र का सर्वे कर उचित कार्रवाई करने को कहा है।
देहरादून निवासी विकेश नेगी की ओर से दायर जनहित याचिका पर कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की युगलपीठ में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि उसके संज्ञान में आया है कि विकासनगर के क्यारकुली भट्टा, चालंग, अम्बारी, डांडा जंगल, रूद्रपुर और आदि गांवों में धोखाधड़ी से वन भूमि को खुर्द-बुर्द किया जा रहा है। उसे हड़पने के साथ ही बेचा जा रहा है। याचिकाकर्ता की ओर से आगे कहा गया कि वन भूमि को हड़पने के साथ ही वनों को भी काटा जा रहा है। उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम, 1950 के तहत इस भूमि को बेचा या खरीदा नहीं जा सकता है।
अधिनियम में स्पष्ट उल्लेख है कि सरकार और गांव समाज की वन भूमि को किसी भी रूप में हस्तांतरित या बेचा नहीं जा सकता है। इसे वन संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के खिलाफ बताया गया है। याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि इसी साल 20 सितंबर, 2024 को इस मामले में मुख्यमंत्री, वन मंत्री को प्रत्यावेदन सौंपने के साथ ही इस प्रकरण को प्रदेश के मुख्य वन संरक्षक के संज्ञान में भी लाया गया लेकिन आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। अंत में अदालत ने कोई ठोस आदेश पारित करने के बजाय याचिकाकर्ता को संबंधित डीएफओ को तीन सप्ताह के अंदर प्रत्यावेदन सौंपने के निर्देश दिए हैं। साथ ही डीएफओ को क्षेत्र का निरीक्षण कर छह माह में उचित कार्रवाई करने के भी निर्देश दे दिए।