Edited By Vandana Khosla, Updated: 13 Jan, 2025 03:04 PM
बागेश्वरः पौराणिक धरोहरों को समेटे उत्तराखंड की काशी के नाम से प्रसिद्ध बागेश्वर में माघ माह में होने वाले उत्तरायणी मेले की अलग ही पहचान है। सरयू, गोमती और विलुप्त सरस्वती के संगम तट पर बसे शिवनगरी बागेश्वर में हर वर्ष उत्तरायणी का मेला लगता है। आज...
बागेश्वरः पौराणिक धरोहरों को समेटे उत्तराखंड की काशी के नाम से प्रसिद्ध बागेश्वर में माघ माह में होने वाले उत्तरायणी मेले की अलग ही पहचान है। सरयू, गोमती और विलुप्त सरस्वती के संगम तट पर बसे शिवनगरी बागेश्वर में हर वर्ष उत्तरायणी का मेला लगता है। आज रंगारंग झांकियों से उत्तरायणी मेले का आगाज हुआ। कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत और जिलाधिकारी आशीष भटगांई ने तहसील परिसर से झांकियों को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। नगर में मुख्य बाजार से होते हुए झांकियां नुमाइश खेत मैदान पहुंची। ऐतिहासिक, सांस्कृतिक परिवेश को अपने में समेटे झांकियों ने सभी का मन मोह लिया।
उत्तरायणी मेले के शुभारंभ पर तहसील परिसर से निकाली गई रंगारंग झांकियां
उत्तरायणी मेले के शुभारंभ पर आज तहसील परिसर से रंगारंग झांकियां निकली। झांकी तहसील परिसर से गोमती पुल, स्टेशन रोड, कांडा माल रोड़, सरयू पुल, दूग बाजार होते हुये नुमाइसखेत पहुंची। झांकियों में दारमा के कलाकारों के नृत्य के साथ ही ढोल वादन, स्थानीय कलाकारों द्वारा प्रस्तुत झोड़ा, चांचरी और विभिन्न स्कूलों द्वारा पेश किया गया भांगड़ा, झोड़ा-चांचरी पेश करती स्थानीय महिलाएं, सेना के बैंड के साथ ही छोलिया नृतकों ने सभी का मन मोह लिया। ऐतिहासिक उत्तरायणी मेले का उदघाटन कुमाउं कमिश्नर दीपक रावत और बागेश्वर जिले के जिलाधिकारी आशीष भटगांई ने किया। इस मौके पर कुमाउं कमिश्नर दीपक रावत ने कहा कि उत्तरायणी का मेला ऐतिहासिक काल से चलता आ रहा है। कहा कि बाबा बागनाथ की यह धरती पावन धरती है। वहीं, जिलाधिकारी आशीष भटगांई ने कहा कि ऐतिहासिक उत्तरायणी मेले को भव्य तरीके से मनाने के लिए प्रशासन द्वारा पूरे प्रयास किए जा रहे हैं।
सांस्कृतिक दलों की टोलियों ने बाबा बागनाथ मंदिर में की पूजा अर्चना
विभिन्न क्षेत्रों से आए सांस्कृतिक दलों ने कुमाऊंनी संस्कृति और सभ्यता को झांकी के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। सांस्कृतिक दलों की टोलियों ने बाबा बागनाथ मंदिर में भी पूजा अर्चना की। झांकी में जोहार संस्कृति पर आधारित लोक संगीत आकर्षण का केन्द्र रही। झांकी यात्रा में विकास प्रदर्शनी सहित विद्यालयों के बैंड आदि ने भी प्रतिभाग किया। वहीं विधायक सुरेश गडिया ने उत्तरायणी पर्व पर सभी को शुभकामनाएं दी।
उत्तरायणी के दौरान हुआ था अंग्रेजों के काला कानून कुली बेगार का अंत
गौरतलब है कि अंग्रेजों के काला कानून कुली बेगार (कुली-बेगार प्रथा के तहत अंग्रेज कुमाऊं के लोगों को बिना पैसे दिए अपना काम करवाते थे) का अंत उत्तरायणी के दौरान 14 जनवरी, 1921 में कुमाऊं केसरी बद्री दत्त पाण्डे की अगुवाई में हुआ था। तब इसका प्रभाव सम्पूर्ण उत्तराखण्ड में रहा। कुमाऊं मण्डल में इस कुप्रथा की कमान बद्री दत्त पाण्डे जी के हाथ में थी, वहीं गढ़वाल मण्डल में इसकी कमान अनुसूया प्रसाद बहुगुणा के हाथों में थी। 13 जनवरी 1921 को संक्रान्ति के दिन एक बड़ी सभा हुई और 14 जनवरी को कुली बेगार के रजिस्टरों को सरयू में प्रवाहित कर कुली बेगार का अंत किया गया। इस काला कानून का खात्मा होने के बाद 28 जून 1929 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने बागेश्वर की यात्रा की और नुमाइश खेत मैदान में सभा की और इस अहिंसक आंदोलन की सफलता पर लोगों के प्रति कृतज्ञता जता इसे रक्तहीन क्रांति की संज्ञा दी।