AIIMS के चिकित्सकों ने बना दी नई आहार नली...मरीज को दिया नया जीवन,टॉयलेट क्लीनर से जली थी

Edited By Vandana Khosla, Updated: 05 Jun, 2025 03:16 PM

aiims doctors made a new food pipe gave new life to the patient

देहरादूनः उत्तराखंड के ऋषिकेश स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के विशेषज्ञ चिकित्सकों ने अपने अनुभव और टीम वर्क की कौशलता से एक साल से अधिक समय से फीडिंग पाइप से भोजन ग्रहण कर रही एक महिला की सर्जरी के जरिये उसकी नई आहार नली बना दी।...

देहरादूनः उत्तराखंड के ऋषिकेश स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के विशेषज्ञ चिकित्सकों ने अपने अनुभव और टीम वर्क की कौशलता से एक साल से अधिक समय से फीडिंग पाइप से भोजन ग्रहण कर रही एक महिला की सर्जरी के जरिये उसकी नई आहार नली बना दी। महिला मरीज अपनी बीमारी को नियति मानकर जीवन की आस खोने लगी थी। इस बीच एम्स में अनुभवी डॉक्टरों की टीम ने सर्जरी के जरिये उसकी नई आहार नली बना दी। आम लोगों की तरह मुंह से भोजन शुरू हुआ तो मानों महिला का जीवन वापस लौट आया। सर्जरी के बाद महिला अब आम लोगों की तरह भोजन ग्रहण कर रही है और अपने घर पर रहते हुए पूरी तरह स्वस्थ है।

टॉयलेट क्लीनर पेट में चले जाने से जली थी महिला की आहार नली 
दरअसल, एसिड युक्त टॉयलेट क्लीनर पेट में चले जाने के कारण मुरादाबाद की एक 24 वर्षीय महिला की आहार नली पूरी तरह से जल गई थी। इस वजह से वह पिछले 13 महीनों से फीडिंग ट्यूब के जरिए ही तरल भोजन पर निर्भर थी और मुंह से कुछ भी खाने-पीने में असमर्थ थी। इस दौरान उसका जीवन एक ट्यूब (फीडिंग जेजूनोस्टॉमी) के माध्यम से तरल आहार पर चल रहा था। चिकित्सीय भाषा में पेट में तरल भोज्य पदार्थ पहुंचाने की यह एक ऐसी व्यवस्था है जिससे ट्यूब नली के माध्यम से भोजन को सीधे पेट की छोटी आंत में पहुंचा दिया जाता है। एम्स आने से पहले महिला ने कई अस्पतालों से इलाज भी करवाया लेकिन कई अस्पतालों द्वारा एंडोस्कोपी करने के बाद भी उसकी भोजन नली में आई रुकावट दूर नहीं हो पाई।

डॉक्टरों ने रोगी की बड़ी आंत से बनाई नई आहार नली
आखिर में एम्स पंहुचने पर जांचों के उपरान्त सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के डॉक्टरों ने रोगी की बड़ी आंत के एक हिस्से से नई आहार नली (इसोफेगस) बनाने का निर्णय लिया। सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के हेड व सर्जरी करने वाले शल्य चिकित्सक डॉ. लोकेश अरोड़ा ने बुधवार को इस बारे में बताया कि ‘कोलोनिक पुल-अप' नामक इस सर्जरी की प्रक्रिया में आंत का हिस्सा पेट से होते हुए छाती के रास्ते गले तक खींचा गया। जोखिम भरी इस सर्जरी में लगभग सात घंटे का समय लगा और विभिन्न विभागों की संयुक्त टीम ने मिलकर इसे सफल बनाया।

टीम की गहन निगरानी की वजह से यह सर्जरी पूरी तरह रही सफल 
संस्थान की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर (डॉक्टर) मीनू सिंह और चिकित्सा अधीक्षक प्रो. बी. सत्याश्री ने इस उपलब्धि पर सर्जरी करने वाली टीम के कार्यों की प्रशंसा की है। डॉ. लोकेश अरोड़ा ने बताया कि इस सर्जरी की सबसे बड़ी चुनौती आहार नली के पास स्थित वॉयस बॉक्स को सुरक्षित रखना था। ऐसे में थोड़ी सी भी चूक होती तो स्वरयंत्र को स्थायी नुकसान हो सकता था और महिला की हमेशा के लिए आवाज जा सकती थी। इसलिए अलग-अलग विभागों के विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम गठित की गयी और टीम की गहन निगरानी की वजह से यह सर्जरी पूरी तरह सफल रही।

सर्जरी के आठवें दिन से रोगी ने मुंह से भोजन करना कर दिया था शुरू
डा अरोड़ा ने बताया कि टीम में उनके अलावा इसी विभाग की डॉ. सुनीता सुमन, डॉ. नीरज यादव, डॉ. विनय, डॉ. अजहर, डॉ. शुभम, डॉ. अमन, ईएनटी सर्जन डॉ. अमित त्यागी, एनेस्थीसिया विशेषज्ञ डॉ. संजय अग्रवाल व नर्सिंग ऑफिसर दीप, मनीष, सीमा और रितेश आदि शामिल रहे। उन्होंने बताया कि सर्जरी के बाद रोगी को पांच दिन तक आईसीयू में रखा गया। जनरल वार्ड में शिफ्ट करने के बाद रोगी ने आठवें दिन से मुंह से भोजन करना शुरू कर दिया था और 15वें दिन उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। 

हालांकि यह सर्जरी जनवरी माह में हो चुकी थी, लेकिन पिछले चार महीनों तक डॉक्टर नियमित तौर पर फोन और फॉलोअप के लिए बुलाकर उसके स्वास्थ्य की मॉनिटरिंग कर रहे थे। चिकित्सकों के अनुसार सम्पूर्ण भोजन करने से अब उसका 10 किलोग्राम वजन बढ़ गया है और वह सामान्य जीवन जीते हुए पूरी तरह स्वस्थ है। 

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