Edited By Nitika, Updated: 17 Aug, 2023 03:03 PM

उत्तराखंड के बहुचर्चित तेल घोटाला मामले में प्रदेश सरकार अपने ही जाल में फंस गई है। उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री सचिवालय के दोषी अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के संकेत दिए हैं।
नैनीतालः उत्तराखंड के बहुचर्चित तेल घोटाला मामले में प्रदेश सरकार अपने ही जाल में फंस गई है। उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री सचिवालय के दोषी अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के संकेत दिए हैं। अदालत ने हालांकि, सरकार का पक्ष जानने के लिए उसे एक सप्ताह का समय दिया है। अदालत ने अपने जवाब में साफ-साफ कहा है कि सरकार एक सप्ताह में जवाब देने में असफल रही तो गृह सचिव दोषी अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ ही मुख्यमंत्री के निजी सचिव और कार्मिकों के खिलाफ अभियोग पंजीकृत करेंगे।
दरअसल इस मामले को देहरादून के उनियाल टूर एंड ट्रेवल्स और काला टूर एंड ट्रेवल्स नामक एजेसिंयों की ओर से चुनौती दी गई है। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की एकलपीठ में हुई। याचिकाकर्ताओं की ओर से अदालत को बताया गया कि सन् 2009 से 2013 की अवधि में तत्कालीन मुख्यमंत्रियों की यात्रा के दौरान उनकी एजेंसियों की ओर से वाहन उपलब्ध कराये जाते थे। इसी अवधि में देहरादून में भी तत्कालीन मुख्यमंत्रियों को दोनों एजेसियों की ओर से वाहन उपलब्ध करवाए गए। इसके बाद वाहनों पर खर्च की धनराशि वसूली के लिये निर्धारित प्रक्रिया के तहत 27,25,500 के बिल उपलब्ध करवाए गए। तत्कालीन मुख्यमंत्री कार्यालय और देहरादून के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) कार्यालय की ओर से उक्त बिलों का सत्यापन किया गया और उसके बाद कोषागार से उन्हें भुगतान किया गया। इस पूरे प्रकरण में पूरी प्रक्रिया पारदर्शी तरीके से अपनाई गई।
याचिकाकर्ता की ओर से आगे कहा गया कि भुगतान के तीन साल बाद सरकार की ओर से दोनों एजेंसियों के खिलाफ फर्जीवाड़े के आरोप में अभियोग पंजीकृत कर कार्रवाई करने के निर्देश दे दिए गए। याचिकाकर्ता की ओर से आगे कहा गया कि आरोप लगाया गया कि कूटरचित दस्तावेज तैयार कर तेल घोटाला को अंजाम दिया गया है। उन्हें गिरफ्तार भी किया गया और उन्हें जमानत के लिए अदालत की शरण लेनी पड़ी। याचिकाकर्ताओं और एजेंसी स्वामियों की ओर से आगे कहा गया कि उन्होंने कोई फर्जीवाड़ा नहीं किया है। उन्हें गलत फंसाया गया है। उन्हें राजनीतिक साजिश का शिकार बनाया गया है। तीन साल बाद उनके खिलाफ कार्रवाई की साजिश रची गई। अदालत ने इस मामले को बेहद गंभीरता से लिया और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के संकेत दिए।
अदालत ने कार्रवाई से पहले सरकार का पक्ष जानने के लिए एक सप्ताह में स्थिति स्पष्ट करने को कहा है। अदालत ने कहा कि सरकार को तीन साल बाद इस मामले में कार्रवाई की याद क्यों आई और साथ ही कहा कि यदि इस मामले में फर्जीवाड़ा हुआ है तो मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री कार्यालय और सीएमओ कार्यालय के दोषी अधिकारियों के खिलाफ अभी तक उचित कार्रवाई क्यों नहीं की गई है। अदालत ने यह भी कहा कि सरकार यदि इस मामले में एक सप्ताह में जवाब देने में असफल रहती है तो गृह सचिव दोषियों के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई अमल में लाएंगे। इससे साफ है कि अदालत के सख्त रुख से सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।