गर्म हो रही जलवायु से उत्तराखंड में फलों के उत्पादन में आई भारी गिरावट: अध्ययन

Edited By Nitika, Updated: 31 May, 2024 12:27 PM

there has been a huge decline in fruit production in uttarakhand

उत्तराखंड में गर्म हो रही जलवायु के कारण पिछले सात सालों में प्रमुख फलों जैसे उच्च गुणवत्ता वाले सेबों, नाशपाती, आड़ू, आलूबुखारा और खूबानी के उत्पादन में जबरदस्त गिरावट आई है।

 

देहरादूनः उत्तराखंड में गर्म हो रही जलवायु के कारण पिछले सात सालों में प्रमुख फलों जैसे उच्च गुणवत्ता वाले सेबों, नाशपाती, आड़ू, आलूबुखारा और खूबानी के उत्पादन में जबरदस्त गिरावट आई है। पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में शोध करने वाले संगठन 'क्लाइमेट ट्रेंडस' द्वारा किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि प्रमुख फलों के उत्पादन और उन्हें उगाए जाने वाले क्षेत्र में काफी कमी आई है।

अध्ययन के अनुसार, शीतोष्ण फलों की पैदावार में उष्णकटिबंधीय फलों के मुकाबले ज्यादा कमी आई है। राज्य में बदलता तापमान औद्योनिकी (फल) उत्पादन में बदलाव को कुछ हद तक स्पष्ट कर सकता है। अध्ययन में कहा गया है कि गर्म होती जलवायु के कारण कुछ फलों की किस्में कम उत्पादक हो रही हैं, जिसके कारण किसान उष्णकटिबंधीय विकल्पों की ओर बढ़ रहे हैं, जो बदलती जलवायु परिस्थितियों के लिए बेहतर रूप से अनुकूल हैं। उत्तराखंड में बागवानी उत्पादन का क्षेत्र बहुत सिकुड़ गया है, जिसके कारण भी प्रमुख फलों की पैदावार में भी 2016-17 और 2022-23 के बीच काफी कमी आई। हिमालय के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में उगाए जाने वाले शीतोष्ण फल जैसे नाशपाती, खूबानी, आलूबुखारा और अखरोट की पैदावार में सबसे ज्यादा गिरावट देखने को मिली है।

अध्ययन के अनुसार, सेब उत्पादक क्षेत्र 2016-17 में 25,201.58 हेक्टेयर से घटकर 2022-23 में 11,327.33 हेक्टेयर रह गया और इसी के साथ सेब की पैदावार में करीब 30 फीसदी गिरावट आई। नींबू की प्रजातियों के फलों की पैदावार 58 प्रतिशत तक सिकुड़ गई। इसके मुकाबले उष्णकटिबंधीय फलों में जलवायु परिवर्तन का असर कम दिखा। उदाहरण के लिए, खेती के क्षेत्र में करीब 49 और 42 प्रतिशत कमी आने के बावजूद आम और लीची का उत्पादन अपेक्षाकृत स्थिर ही रहा और इनमें क्रमश: 20 और 24 फीसदी की कमी ही दर्ज की गई। अध्ययन के अनुसार, अमरूद और करौंदा के उत्पादन में वृद्धि फलों के प्रकार में बदलाव की ओर संकेत करता है और किसानों को ऐसे फलों को उगाने में रूचि होती है, जिनकी बाजार में मांग बेहतर हो या जो स्थानीय दशाओं के बेहतर अनुकूल हों। टिहरी में फलों के उत्पादन क्षेत्र में सर्वाधिक कमी आई है जबकि दूसरा स्थान देहरादून का है। दूसरी तरफ, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ और हरिद्वार में फलों के उत्पादन क्षेत्र और उनकी पैदावार दोनों में गिरावट दर्ज की गई। उत्तराखंड में बढ़ते तापमान के कारण बागवानी उत्पादन में इन गहन परिवर्तनों को आंशिक रूप से समझा जा सकता है।

अध्ययन के अनुसार, उत्तरखंड में 1970 और 2022 के बीच 0.02 डिग्री सेल्सियस की वार्षिक दर से औसत तापमान बढ़ा है जबकि राज्य के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में इसी अवधि के दौरान 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज हुआ। शोध में खुलासा हुआ है कि ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जाड़ों में अपेक्षाकृत ज्यादा तापमान होने से बर्फ के गलने की गति तेज हुई, जिससे बर्फ से ढंके क्षेत्र तेजी से कम हुए। पिछले करीब 20 सालों में राज्य के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जाड़ों के तापमान 0.12 डिग्री सेल्सियस की दर से बढ़े हैं। उत्तरकाशी, चमोली, पिथौरागढ़ और रुद्रप्रयाग जिलों में बर्फ से ढंके क्षेत्र 2000 के मुकाबले 2020 तक 90-100 किलोमीटर तक सिकुड़ गए हैं। जाड़ों में कड़कड़ाती ठंड और बर्फ उच्च हिमालयी क्षेत्र में उगने वाले सेब, आलूबुखारा, आड़ू, खुबानी और अखरोट में फूल आने और उनके बढ़ने के लिए जरूरी होते हैं। अपेक्षाकृत गर्म जाड़े, कम बर्फबारी, सिकुड़ता हिमाच्छादित क्षेत्र कलियों को खिलने में समस्या पैदा कर सकता है, जिससे शीतोष्ण फलों में फूल खिलने और उसकी पैदावार पर प्रभाव पड़ सकता है।

कृषि विज्ञान केंद्र आइसीएआर-सीएसएसआरआई के प्रमुख और वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. पंकज नौटियाल ने कहा, “उच्च गुणवत्ता वाले सेब जैसी पारंपरिक शीतोष्ण फसलों को सुप्त अवधि (दिसंबर-मार्च) के दौरान 1200-1600 घंटों के लिए सात डिग्री सेल्सियस से कम तापमान की आवश्यकता होती है। पिछले 5-10 वर्षों में इस क्षेत्र में जितनी बर्फबारी हुई है, उसकी तुलना में सेब को दो-तीन गुना अधिक बर्फबारी की आवश्यकता है, जिससे फल की गुणवत्ता और उपज खराब हो गई है।' रानीखेत के एक किसान मोहन चौबटिया ने कहा, ‘‘बारिश और बर्फ कम होने से बहुत ही दिक्कत हो रही है।' उन्होंने यह भी कहा कि पिछले दो दशकों में अल्मोड़ा में शीतोष्ण फलों का उत्पादन घटकर आधा रह गया है।

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