राज्यपाल ने वर्षा जल संरक्षण प्रणाली के कार्यों का किया लोकार्पण, कहा- वर्तमान समय में जल संरक्षण अत्यंत आवश्यक

Edited By Ramanjot, Updated: 12 Aug, 2023 06:05 PM

the governor inaugurated the works of rain water conservation

राज्यपाल ने पानी की बयाचत किए जाने को सभी की जिम्मेदारी बताते हुए कहा कि हम पानी की बचत करें, जिससे आने वाले समय में पानी की दिक्कत न हो। उन्होंने कहा कि राजभवन और आसपास के क्षेत्र में अधिक मात्रा में बारिश होती है और वह पानी बहकर चला जाता था। जल...

देहरादून: उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेनि) गुरमीत सिंह ने शनिवार को राजभवन में वर्षा जल संरक्षण प्रणाली के कार्यों का लोकार्पण किया। सिंह ने कहा कि वर्तमान समय में जल संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। वर्षा के जल को संरक्षित कर उसे पुन: उपयोग में लाया जाना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि इस दिशा में राजभवन में भी यह पहल की गई है कि किस प्रकार यहां वर्षा के जल को संरक्षित कर उसका पुनरुपयोग किया जाय। 

राज्यपाल ने पानी की बयाचत किए जाने को सभी की जिम्मेदारी बताते हुए कहा कि हम पानी की बचत करें, जिससे आने वाले समय में पानी की दिक्कत न हो। उन्होंने कहा कि राजभवन और आसपास के क्षेत्र में अधिक मात्रा में बारिश होती है और वह पानी बहकर चला जाता था। जल संरक्षण हेतु बनाए गए टैंक के निर्माण से अब उस पानी को स्टोर किया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि जल संरक्षण हेतु किए गए इस तरह के प्रयासों से जलस्तर में निश्चित ही वृद्धि होगी। सिंह ने कहा कि उत्तराखंड में जल संरक्षण के लिए इस तरह के अन्य जगहों में भी इस तरह के प्रयास किए जा रहे हैं जिससे आने वाले समय में अवश्य ही जलस्तर में वद्धि होगी। उन्होंने इस कार्य में लगे अधिकारियों के कार्यों की सराहना की और कहा कि बहुत कम समय में ही इन कार्यों को सम्पन्न किया गया है। 

उल्लेखनीय है कि राजभवन में वर्षा जल संग्रहण प्रणाली के अंतर्गत बारिश के पानी को संरक्षित करने हेतु 200 किलो लीटर क्षमता के टैंक का निर्माण किया गया है। पूरे राजभवन परिसर में होने वाली बारिश के पानी को इस टैंक में एकत्रित किया जाएगा। इसमें प्रतिवर्ष 21.78 लाख लीटर वर्षा जल उपलब्ध होगा, जिसमें प्रतिवर्ष कुल 8.40 लाख लीटर वर्षा जल भूगर्भीय जल स्तर में वृद्धि तथा प्रतिवर्ष कुल 13.38 लाख लीटर वर्षा जल का उपयोग सामान्य कार्यों यथा बागवानी, परिसर की धुलाई इत्यादि कार्यों में किया जाएगा। इसके फलस्वरूप भूगर्भीय जल के दोहन में कमी तथा पेयजल का समुचित उपयोग किया जाएगा। इस योजना की कुल लागत 37.16 लाख रुपए है। 

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