यहां रहने वाला मंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं... प्रेमचंद के इस्तीफे के बाद 'आर-2' बंगले को लेकर मिथक फिर चर्चा में

Edited By Vandana Khosla, Updated: 20 Mar, 2025 03:35 PM

the minister living here did not complete his term

देहरादूनः उत्तराखंड में प्रेमचंद अग्रवाल के मंत्री पद से इस्तीफा देने के साथ ही यहां यमुना कॉलोनी में 'आर-2' बंगला अपने इस मिथक के कारण एक बार फिर चर्चाओं में आ गया है कि यहां रहने वाला मंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता। 'पहाड़-मैदान' संबंधी...

देहरादूनः उत्तराखंड में प्रेमचंद अग्रवाल के मंत्री पद से इस्तीफा देने के साथ ही यहां यमुना कॉलोनी में 'आर-2' बंगला अपने इस मिथक के कारण एक बार फिर चर्चाओं में आ गया है कि यहां रहने वाला मंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता। 'पहाड़-मैदान' संबंधी अपने विवादित बयान को लेकर घिरे अग्रवाल ने रविवार को पद से त्यागपत्र दे दिया था और अगली सुबह उन्होंने सरकारी बंगला 'आर-2' भी खाली कर दिया। उन्हें यह बंगला 2022 में आवंटित हुआ था।
 
प्रेमचंद के इस्तीफे के बाद 'आर-2' बंगले से जुड़े मिथक को मिला बल
दरअसल,अविभाजित उत्तर प्रदेश में सिंचाई विभाग के अधिकारियों के लिए बने इस बंगले को वर्ष 2000 में उत्तराखंड बनने के बाद मंत्रियों के सरकारी आवास के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा। वर्ष 2002 में नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में बनी प्रदेश की पहली निर्वाचित सरकार में 'आर-2' बंगला सिंचाई मंत्री शूरवीर सिंह सजवाण को आवंटित किया गया था। हालांकि, देश और विभिन्न राज्यों में मंत्रिमंडल को छोटा रखने के लिए लाए गए 91वें संविधान संशोधन के कारण तिवारी को जुलाई 2004 में अपने मंत्रिमंडल से पांच सदस्यों को हटाना पड़ा जिसमें सजवाण भी शामिल थे। इसके बाद, 2007 में हरक सिंह रावत इस बंगले में नेता प्रतिपक्ष के रूप में रहे और अपना कार्यकाल पूरा किया। वर्ष 2012 में मंत्री बनने के बाद भी वह इसी बंगले में रहते रहे लेकिन 2016 में हरीश रावत सरकार से अन्य कांग्रेस विधायकों के साथ बगावत करने के चलते उन्हें मंत्री पद और विधायकी के साथ ही इस बंगले को भी अलविदा कहना पड़ा। अग्रवाल ने भी अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इस्तीफा देने के साथ एक बार फिर से 'आर-2' बंगले से जुड़े मिथक को बल मिला है और यह एक बार फिर चर्चा में है।

उत्तराखंड के सीएम आवास को लेकर भी यही अंधविश्वास लंबे समय तक चलता रहा
इसी तरह, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री आवास को लेकर भी यही अंधविश्वास लंबे समय तक चलता रहा कि यहां रहने वाला मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता। वर्ष 2012 में मुख्यमंत्री बनने के बाद विजय बहुगुणा यहां रहने पहुंचे लेकिन 2014 में उन्हें पद छोड़ना पड़ा। इसी डर की वजह से बहुगुणा के स्थान पर मुख्यमंत्री बने हरीश रावत ने भी मुख्यमंत्री आवास में रहने से परहेज किया। इस बारे में हरीश रावत ने कहा, “जब मैं मुख्यमंत्री बना, तो मुझे इस बंगले के बारे में ऐसी कोई जानकारी नहीं थी। लेकिन, जब मैंने वहां जाने की तैयारी की, तब तक राजनीतिक हालात ऐसे हो गए कि मैं वहां नहीं जा सका। चुनाव के बाद जाने का सोचा, लेकिन तब तक सरकार ही बदल गई।” वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्री बने त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस मिथक को तोड़ने की कोशिश की और मुख्यमंत्री आवास में रहने का फैसला किया, लेकिन कार्यकाल पूरा होने से पहले ही 2021 में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।

सीएम धामी के लिए बहुत 'शुभ' साबित हुआ मुख्यमंत्री आवास
हालांकि, उत्तराखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए मुख्यमंत्री आवास बहुत 'शुभ' साबित हुआ और यहां रहते हुए प्रदेश में नया चुनावी इतिहास रचते हुए वह न केवल अपनी पार्टी को लगातार दूसरी बार सत्ता में लाए बल्कि खुद भी दोबारा मुख्यमंत्री बने। वहीं, सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक नेता ही सबसे अधिक अंधविश्वासी होते हैं। बताया गया कि हरीश रावत मुख्यमंत्री आवास में इसलिए नहीं गए, क्योंकि उनके मन में यह डर बसा दिया गया था कि जो भी वहां गया, अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका। जब त्रिवेंद्र सिंह रावत इस मिथक को तोड़ने के लिए वहां रहने गए, तब बीच कार्यकाल में उन्हें भी पद छोड़ना पड़ा, जिससे यह धारणा और मजबूत हो गई। 

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