कुटुंब अदालतों के अधिकार क्षेत्र में विस्तार के लिए विधायी संशोधन की जरूरत: न्यायमूर्ति हिमा कोहली

Edited By Nitika, Updated: 08 Apr, 2024 10:39 AM

statement of justice hima kohli

न्यायमूर्ति हिमा कोहली ने सुझाव देते हुए कहा कि कुटुंब अदालतों के अधिकार क्षेत्र का विस्तार करने और मामलों के सुचारू तथा प्रभावी तरीके से निपटारे के लिए उनके क्षेत्राधिकार में विस्तार के खातिर विधायी संशोधन की जरूरत है।

 

देहरादूनः न्यायमूर्ति हिमा कोहली ने सुझाव देते हुए कहा कि कुटुंब अदालतों के अधिकार क्षेत्र का विस्तार करने और मामलों के सुचारू तथा प्रभावी तरीके से निपटारे के लिए उनके क्षेत्राधिकार में विस्तार के खातिर विधायी संशोधन की जरूरत है। कोहली कुटुंब अदालत के मामलों के लिए उच्चतम न्यायालय की समिति की प्रमुख हैं।

कुटुंब अदालती मामलों पर उत्तरी क्षेत्र के दो दिवसीय सम्मेलन में अपने मुख्य भाषण के दौरान न्यायमूर्ति कोहली ने कहा कि 1984 में अस्तित्व में आया कुटुंब अदालत अधिनियम व्यापक है लेकिन इसकी अपनी सीमाएं हैं, जो कुटुंब अदालतों के प्रभाव को कम करती हैं। उन्होंने कहा कि अधिनियम की सीमाओं में से एक है कि घरेलू हिंसा के खिलाफ निषेधाज्ञा जारी करने में इसकी खामोशी। न्यायमूर्ति कोहली ने कहा, ‘‘घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के माध्यम से इस खाई को आंशिक रूप से भरने की कोशिश की गई थी, लेकिन क्षेत्राधिकार संबंधी चुनौतियां अभी भी हैं।''

वहीं न्यायमूर्ति कोहली ने कहा कि दीवानी प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) और साक्ष्य अधिनियम जैसे अन्य कानूनों के साथ-साथ कुटुंब अदालत अधिनियम की समग्र व्याख्या की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अवमानना के मामलों से निपटने में कुटुंब अदालतों के पास पर्याप्त अधिकार नहीं होना भी इन अदालतों के लिए एक मुद्दा है। उन्होंने कहा, ‘‘विधायी संशोधन ही कुटुंब अदालतों के कामकाज को प्रभावित करने वाली क्षेत्राधिकार संबंधी चुनौतियों का समाधान करने में मदद करेंगे।''

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