Edited By Vandana Khosla, Updated: 16 Oct, 2024 03:47 PM
हरिद्वारः उत्तराखंड की धर्मनगरी हरिद्वार में चंडी चौदस के दिन मां चंडी देवी के दर्शन के लिए मंदिर परिसर में भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे है। दरअसल, देश-विदेश में प्रख्यात नील पर्वत पर स्थित मंदिर में मां भगवती चंडी देवी दो रूपों में विराजमान...
हरिद्वारः उत्तराखंड की धर्मनगरी हरिद्वार में चंडी चौदस के दिन मां चंडी देवी के दर्शन के लिए मंदिर परिसर में भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे है। दरअसल, देश-विदेश में प्रख्यात नील पर्वत पर स्थित मंदिर में मां भगवती चंडी देवी दो रूपों में विराजमान है। इसमें एक रूप में मां भगवती 'रुद्र चंडिका खम्ब' के रूप में और दूसरे रूप में 'मंगल चंडिका' के रूप में विराजमान है। वैसे तो इस प्राचीन और पौराणिक मां चंडी देवी मंदिर में साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है। लेकिन मान्यता है कि नवरात्रों से लेकर चंडी चौदस के दौरान जो भक्त माता के इस दरबार में सच्चे मन से प्रार्थना करता है। मां उसकी हर मन्नत पूरी करती है। यही कारण है कि चैत्र व शारदीय नवरात्रों में यहां पर देश के ही नहीं अपितु विभिन्न देशों के लोग भी मां के दरबार में अपनी मन्नतों को लेकर पहुंचते है।
जानिए मां चंडी देवी मंदिर का प्राचीन इतिहास
जानकारी के अनुसार नील पर्वत पर स्थित मां चंडी का दरबार प्राचीन मंदिरों में से एक है। बता दें कि आदि काल में जब शुंभ-निशुंभ व महिषासुर ने धरती पर प्रलय मचाया हुआ था। इसमें देवताओं ने उनका संहार करने का प्रयास किया लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। ऐसे में सभी देवताओं ने भगवान भोलेनाथ के दरबार में दोनों राक्षसों के संहार के लिए गुहार लगाई। तब भगवान भोलेनाथ व देवताओं के तेज से मां चंडी ने अवतार लिया और चंडी का रूप धारण कर दैत्यों को दौड़ाया। वहीं शुम्भ निशुम्भ जब मां चंडी से बच कर नील पर्वत पर छिपे हुए थे। तभी माता ने यहां पर खंभ रूप में प्रकट होकर दोनों का वध कर दिया। इसके उपरांत माता ने देवताओं से वर मांगने को कहा। तब स्वर्ग लोक के सभी देवताओं ने मानव जाती के कल्याण हेतु माता को इसी स्थान पर विराजमान रहने व भक्तो के कल्याण का वरदान मांगा। तभी से ही माता यहां पर विराजमान होकर अपने भक्तों का कल्याण कर रही है।
चंडी चौदस के दिन लगी भक्तों की लंबी कतारें
वहीं इस शुभ अवसर पर श्रद्धालुओं ने कहा कि चंडी चौदस के दौरान धर्मनगरी हरिद्वार स्थित माता के मंदिर में दर्शनों के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचते है। साथ ही कहा कि इस मंदिर में आने वाले भक्त माता के दरबार में अपना शीश नवाना नहीं भूलते है। मान्यता है कि जो भी भक्त माता के पसंदीदा भोग नारियल को लेकर सच्चे मन से प्रार्थना करता है उसकी मुराद अवश्य पूरी होती है। यही कारण है कि शारदीय नवरात्रों के बाद चंडी चौदस के दिन यहां पर दूर-दूर से आने वाले भक्तों की लंबी कतारे नजर आती है। वहीं इन भक्तों पर अपार कृपा करते हुए मां भगवती उन्हें अपना आशीर्वाद जरूर देती है।
3 किमी की चढ़ाई कर दरबार में पंहुचते है भक्त
बता दें कि नील पर्वत स्थित मां चंडी देवी मंदिर में साल भर भक्तो का तांता लगा रहता है। इस दौरान मंदिर में पहुंचने वाले भक्त तीन किलोमीटर पैदल कठिन चढ़ाई को पार करते हुए मां के दरबार में पंहुचते है। वहीं इस पर्वत पर मां चंडी देवी के दर्शन के लिए उड़न खटोले से भी पंहुचा जा सकता है। यहां नवरात्रों के बाद चंडी चौदस का मेला भी लगता है। इस चंडी चौदस मेले के दौरान भी हजारों की संख्या में भक्त मां चंडी देवी का पूजन करते है। इसके अतिरिक्त अपनी मनोकामना पूर्ण होने की कामना भी करते है।